वृक्ष देवाय नमः गुल्या राजा के रूप में होती है पेडों की पूजा

चाई गांव में अलिखित परंपरा में बड़ा विश्वाश


- भाद्रपद माह में होती है गुल्या राजा की विशेष पूजा


चंद्र प्रकाश बुडाकोटी 
देहरादून। सच ही कहा है की भगवान कण कण में बिराजमान है जिस रूप में पूजो उसी में दर्शन देते है। पौड़ी जिले के जयहरीखाल ब्लॉक का चाई गांव यूँ तो यह गांव प्रदेश के दूसरे गांवो की तरह ही सामान्य है लेकिन इस गांव की एक खासियत इसे अलग बना देती है।
गांव में गुल्या राजा के रूप में तीन साल के पेड़ो की पूजा होती है।यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस अलिखित परंपरा में बड़ा बिश्वाश भरा हुआ है। चाई गांव के सबसे ऊपर गोल्या डाँड़ में तीन साल (कंदार)के पेडो को कई पीढ़ियों से ग्रामीण गोल्या राजा के रूप में पूजते है। जहां हिन्दू धर्म का वृक्ष से गहरा नाता रहा है। वही इस धर्म को वृक्षो का धर्म कहा जाता है। 


अलग-अलग नाम से पूजे जाते
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गोल्या राजा कई नामो से अलग अलग जगह पूजे जाते है।जिसमे गोल्या, गोलू राजा,गोल्ज्यू,ग्वेल,ग्वाल,गोरिलआदि ग्राम के देवता को कुमाऊ के अल्मोड़ा द्वाराहाट में गोल्ज्यू भी कहते है यह न्याय के देवता माने गए है,लेकिन वहाँ इनका मंदिर है और पौड़ी के चाई गांव में पेड़ो के रूप में पूज्य है।


मान्यता
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 कहते है की चाई गांव के पुरातन पीडी के लोगो की जब खेतो में गोठ (गोष्ठ) होती थी उस समय किसी की भी गाय बैल आदि जानवर अगर खो या बिछुड़ जाते थे और गुल्या राजा की सीमा लांघते थे तो, गुल्या राजा (गोठियालु )गोठ में रहने वालो को जागते थे आवाज लगाते थे ,साथ ही उनकी सीमा में सभी सुरक्षित रहते थे। भयानक जंगल के बीच जंगली जानवरो से कोई खतरा भय नहीं रहता। ऐसा महात्म है की अपने भक्तो पर गुल्या राजा पूरी कृपा करते है देश बिदेश के हजारो भक्त हर साल ग्राम देव के दर्शनो को आते है।
 
भाद्रपद में विशेष पूजा
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स्थानीय ग्रामीण हर वर्ष भाद्रप्रद माह में विशेष पूजा करते है। गांव के सभी ग्रामवासी ऱोट,खीर बनाकर गोल्या राजा को पूजते है मनोती पूरी होने पर भक्त लोहे की घंटी,बरछी,त्रिशूल चढ़ाते है।
सदियों से तीन साल के वृक्षो को पूजा जाता है,आज भी यह प्रथा चली आ रही है। मनुष्य का जीवन प्रकृति पर निर्भर करता है उसके अस्तित्व के लिए प्रकृति का परिवेश अनिवार्य है इस ब्रम्हाण्ड को उल्टे वृक्ष की संज्ञा दी है।पहले यह ब्रम्हाण्ड बीज रूप में था और अब यह वृक्ष रूप में दिखाई देता है।प्रलय काल मे यह पुनःबिज रूप में हो जाएगा। लेकिन इक्कीसवी सदी में जहाँ पेड़ो की बलि विकास के नाम पर दी जाती है। वही उत्तराखंड के चाई ग्राम वासी पेड़ो की पूजा करते है,ग्राम देव के रूप में गोल्या राजा पूजे जाते है ।